बहुत दिन हो गए थे, वह अपने पिता से नहीं बोला था। रहते तो दोनों एक ही घर में थे, लेकिन दोनों में कोई बातचीत न होती थी। इस बारे में परिवार के दूसरे सदस्यों को भी पता था। एक दिन उस की दादी ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटा, तू अपने पिता से क्यों नहीं बोलता? आदमी के तो मां–बाप ही सब कुछ होते हैं। तेरे लिए कमा रहा है, उसने क्या अपने साथ ले जाना है।’’
दादी माँ की बात सुनकर वह बोला, ‘‘अम्मा! तेरी सब बातें ठीक हैं। मुझे कौन सा कोई गिला–शिकवा है। मैं तो उन्हें केवल एहसास करवाना चाहता हूँ। वे भी दफ्तर से आकर सीधे अपने कमरे में चले जाते हैं, तुम्हारे साथ एक भी बात नहीं करते।
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