Thursday, June 1, 2023

लघुकथा: वर्ष 2022 में पंजाबी लघुकथा (मिन्नी कहाणी) में नए प्रयोग और अन्य उपलब्धियाँ

 लघुकथा: वर्ष 2022 में पंजाबी लघुकथा (मिन्नी कहाणी) में नए प्रयोग और अन्य उपलब्धियाँ

जगदीश राय कुलरियाँ 

 Posted: June 1, 2023 साल 2022 

अपना रास्ता तय कर इतिहास के पन्नों में दर्ज होने जा रहा है। प्रकृति का नियम है कि जो बना है आखिर एक न एक दिन उसे अंत तक जाना होता है। यह एक सामान्य घटना है कि दिन, महीने, साल बदलते रहते हैं। एक यात्रा समाप्त होती है तो दूसरी भी तैयार हो जाती है। प्रकृति ने भी मनुष्य को इस काबिल बनाया है कि वह अपने कार्यों का मूल्यांकन कर सकता है और भविष्य के लिए नई योजनाएँ बना सकता है। इसी तरह साल 2022 में पंजाबी मिन्नी कहानियों के सफर पर नजर डालें तो यह विधा आगे बढ़ती हुई नजर आती है। विशेषतः इसमें प्रयोगात्मक लघुकथाएँ लिखने की प्रवृत्ति इसमें स्व-निर्मित अवधारणाओं से मुक्त करने का साधन बन सकती है। मिन्नी कहानी लेखक मंच पंजाब ने इस नए प्रयोग के तहत ही डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति एवं जगदीश राय कुलरियाँ के संपादन में ‘नाटकी शैली की मिन्नी कहानियां ‘ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। जिसमें संपादकों के अलावा कुलविंदर कौशल, बीर इंदर बनभोरी, हरभजन सिंह खेमकर्णी, मंगत कुलजिंद,दर्शन सिंह बरेटा, हरप्रीत सिंह राणा, डॉ. बलदेव सिंह खेहरा , गुरसेवक सिंह रोड़की, डॉ. हरजिंदरपाल कौर कंग और अन्य समकालीन लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं। इस वर्ष के दौरान मिन्नी कहानियों की लगभग 29 किताबें एकल , संपादित और अनुवादित रूप में पंजाबी पाठकों को पढ़ने को मिली , जिनमें 13 एकल मिन्नी कहानी संग्रह, 8 संपादित संग्रह और 8 अनुवादित संग्रह शामिल हैं। पंजाबी मिन्नी कहानी की शुरुआत 20वीं सदी के सातवें दशक से मानी जाती है, हालांकि इस शैली के बीज प्राचीन जनम साखियों, बौद्ध कहानियों या जातक कहानियों में भी तलाशे जा सकते हैं। सतवंत कैंथ का 1972 का एकल मिन्नी कहानी संग्रह ‘बर्फी दा टुकड़ा ‘ पहला मिन्नी कहानी संग्रह है, लेकिन कुछ आलोचक, लेखक जानबूझकर इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यह एक अलग बहस हो सकती है कि इस पुस्तक की रचनाएं क्या विधा के मानदंडों पर खरा उतरती हैं या नहीं। यह भी सत्य है कि इस संग्रह के पूर्व भी अनेक पत्रिकाओं में ‘मिन्नी कहानी’ शीर्षक से रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। डॉ हरप्रीत सिंह राणा ने अपने शोध कार्य के दौरान नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘आरसी’ के अप्रैल 1970 के अंक में प्रीतम सिंह पंछी की तीन लघुकथाओं के प्रकाशन को चिन्हित किया है। इसी प्रकार गुरपाल लिट एवं सुरिन्दर कैले द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘अनु रूप’ में लघुकथाएँ भी प्रकाशित हुई हैं। ‘अनु रूप’ बाद में ‘अनु’ नाम से सुरिन्दर कैले के सम्पादन में लम्बे समय तक लगातार प्रकाशित हो रहा है । इन सबका उद्देश्य यह उल्लेख करना है कि नये लेखक न केवल प्रारम्भिक काल की मुद्रित लघुकथाओं या संग्रहों से अनभिज्ञ हैं, बल्कि उनका अधिक अभिलेख भी उपलब्ध नहीं है। 1973 में रोशन फूलवी और ओम प्रकाश गास्सो द्वारा संपादित मिन्नी कहानी संग्रह ‘तरकश ‘ इस विधा में मील पत्थर माना जाता है। यह पुस्तक भी कुछेक लेखकों के पास ही थी, जिसकी आवश्यकता को समझते हुए लघुकथा कलश के संपादक योगराज प्रभाकर ने इसी वर्ष इस पुस्तक का दूसरा संस्करण प्रकाशित कर पंजाबी लेखकों को प्रदान किया। मूल पुस्तक से इसके में जो बात अलग है वह यह है कि कथाकार जसबीर ढंड ने एक आलेख के माध्यम से पुस्तक के संपादन की प्रक्रिया और उस समय की घटनाओं का वर्णन किया है। इतना ही नहीं योगराज प्रभाकर ने इस वर्ष इस विधा में अनुवाद का बड़ा कार्य भी किया है उनके द्वारा डॉ श्याम सुंदर दीप्ति और जगदीश राय कुलरियाँ द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘मिट्टी दे जाए’ का हिंदी में अनुवाद किया गया है, इसी प्रकार हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार सुकेश साहनी, अशोक भाटिया, डॉ. कमल चोपड़ा, प्रताप सिंह सोढ़ी की चुनिंदा लघुकथाओं का पंजाबी में अनुवाद कर पंजाबी पाठकों के साथ साँझा किया गया है। हरभगवन चावला के लघुकथा संग्रह ‘बीसवाँ कोड़ा ‘ का भी उन्होंने पंजाबी में अनुवाद किया है। अन्य अनुवादित पुस्तकों में ‘प्रो. रूप देवगन की चुनिंदा लघुकथाओं ‘ का हिंदी से पंजाबी में अनुवाद जगदीश राय कुलरिया ने किया है और पंजाबी लेखक सतपाल खुल्लर की मिन्नी कहानियों का अनुवाद विवेक ने ‘बदली हुई आवाज’ शीर्षक के तहत हिंदी में किया है। इस के साथ ही हरदीप सभरवाल द्वारा किया छिन्न के संपादक दविंदर पटियालवी की मिन्नी कहानिओं का हिंदी अनुवाद पुस्तक ‘उड़ान’ के माध्यम से सामने आया है। इस वर्ष के दौरान, लोकप्रिय लेखक बाज सिंह महलिया का प्रथम मिन्नी कहानी संग्रह ‘रंगले सज्जन’ प्रकाशित हुआ है। जिसमें लेखक की कुल 70 मिन्नी कहानियां शामिल हैं। महलिया की रचनाओं के विषय, भाषा और संवाद ध्यान आकर्षित करते हैं और पाठक को साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं। वे अपनी कहानियों में समाज को बेहतर बनाने का संदेश देते हैं और पाठक को जागरूक करने का प्रयास करते हैं ‘विकाऊ लोक’, ‘इन्सानियत’, ‘लावारिस बैग’, ‘हंझू ‘, ‘ध्यान’ और ‘रंगल सज्जन’ आदि उनकी रचनाएँ ध्यान आकर्षित करती हैं। डॉ नवजोत कौर लवली का प्रथम मिन्नी कहानी संग्रह ‘नंगे हत्थ’ भी इसी साल प्रकाशित हुआ है । इसमें लेखिका की 38 लघुकथाएं हैं। डॉ लवली की मिन्नी कहानियां मानवीय चरित्र, महिलाओं की समस्याओं, मानव मन की संवेदनाओं, सोशल मीडिया के जाल, वैश्वीकरण के दौर में रिश्तों के बदलते मायने, श्रम के शोषण आदि को प्रस्तुत कर पाठक के मन को बहलाने की कोशिश करती हैं। पुस्तक की मिन्नी कहानियाँ जैसे ‘नंगा हत्थ ‘, ‘ब्लू सूट’, ‘इज्जत’, ‘सहेली’ आदि पढ़ी जा सकती हैं। ‘रिश्तियाँ दा निघ’ पुनीत गुप्ता का प्रथम मिन्नी कहानी संग्रह है इसमें 56 मिन्नी कहानियां हैं जो इस विधा के दायरे में एक सार्थक संवाद रचाती हैं। पुनीत ने अपने अनुभव और कल्पना से समाज को बेहतर बनाने के लिए अपने कामों में ‘रिश्तों की गर्माहट’ बनाए रखने का वादा किया है। वह छोटी-छोटी घटनाओं को अपनी कलम से पाठकों के सामने प्रस्तुत करती हैं ताकि वे उस विषय से अवगत हो सकें। रचनाओं की भाषा सैली सरल है, संवाद उल्लेखनीय हैं संग्रह की शीर्षक कृति के अलावा, ‘श्रद्धा’, ‘ठंडियाई’, ‘ममता’, ‘घर दा जिंद्रा’, ‘टॉमी’ ‘अनख’, ‘रूंगा’, ‘भोग’ आदि मिन्नी कहानियां पढ़ी जा सकती हैं। बिंदर सिंह खुड्डी कलां ने अपने पहले मिन्नी कहानी संग्रह ‘कोसी कोसी धुप्प ‘ के साथ उपस्थिति दर्ज कराई है। सामाजिक सरोकारों की बात करते हुए इस संग्रह की कृतियों में बारीक बिंदुओं को छूने की क्षमता है। गीतकार धर्म कम्मेआना अपने मिन्नी कहानी संग्रह ‘अंदरली गल्ल ‘ से मिन्नी कहानियों के पाठकों से जुड़ गए हैं। कम्मेआना की अधिकांश मिन्नी -कहानियाँ अपने विषय को सार्थक बनाकर पाठक के मन को छूती हैं। ‘छिन’ के प्रधान संपादक तृप्त भट्टी का दसवां लघुकथा संग्रह ‘कोधरे दी रोटी’ प्रकाशित हुआ है, जिसमें 66 लघुकथाएँ हैं। भट्टी लंबे समय से मिन्नी कहानियां लिख रहे हैं उनकी ‘छक्का इज़हारन दा’, ‘छटा चानन दा’, ‘तन मन भये उदास’ आदि पुस्तकों की चर्चा हुई है। उनकी अधिकांश रचनाएँ प्रवास की विभिन्न चिंताओं के साथ वर्जित संबंधों की गाथा भी बयान करती हैं। इसके साथ ही ‘रिश्तियाँ दी कद्र’ (सुरजीत मनहनी), ‘गिरझा’ (हरि सिंह चमक), ‘कंजका ‘ (ललित चौधरी), ‘नित्रियां खुशियां’ (ईशर सिंह लंभवाली), एको रैंक (हरनेक सिंह), ‘बाबुल मेरी गुड़ियां तेरे घर रह गईआं’ (मनजीत कौर मीत), ‘खुरपा’ (रिपदुमन सिंह रूप) आदि मिन्नी कहानी संग्रह अपना महत्व रखते हुए इस विधा का खजाना भरते हैं। संपादित पुस्तकों में गुरजीत कौर अजनाला ने दो पुस्तकों ‘कलमाँ दा काफलां’ और ‘निकी जिही गल्ल ‘ का संपादन किया है। दरअसल गुरजीत कौर अजनाला सोशल मीडिया (फेसबुक) पर ‘कलमाँ दा काफलां’ ग्रुप और ऑनलाइन मैगजीन चला रही हैं। जिसके तहत वे इस मंच पर विभिन्न साहित्यिक विधाओं के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ लघुकथाओं के लिए भी सक्रिय हैं। लघुकथाएँ लिखने के लिए लेखकों को एक विषय दिया जाता है उन्हीं रचनाओं में से चुनिंदा रचनाओं को इन पुस्तकों में प्रस्तुत किया गया है इनमें शामिल विषयों में मानवीय संबंधों में गलतफहमियों, माता-पिता के प्रति प्रेम और भौतिकवादी युग में रिश्तों में आई दरारों, बाल मानसिकता, बुजुर्गों की दुर्दशा, पर्यावरण संरक्षण, नशे का जाल, नशाखोरी के विभिन्न पहलुओं का मानसिक चित्रण शामिल है। मानव जीवन के पहलू, शिक्षा का निजीकरण, वैश्वीकरण का प्रभाव, महिलाओं की लाचारी, सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार आदि विषय भी इन शामिल हैं। इनकी कुछ रचनाएँ मिन्नी -कहानी के ढाँचे से बाहर जाती हुई प्रतीत होती हैं, लेकिन अपने विषय के कारण वे पाठक को प्रभावित या रोमांचित कर सकती हैं। एक बात यह भी है कि जब हम किसी विषय पर आधारित संग्रह प्रकाशित करते हैं तो रचनाओं में दोहराव आ जाता है, इस प्रकार उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन नहीं हो पाता। लेखन एक सहज अवस्था है, मिथ कर कभी अच्छा नहीं लिखवाया जा सकता। इसके अलावा ‘फलक’ मिन्नी कहानी संग्रह का संपादन ओएफसी कनाडा के मुख्य संचालक रविंदर सिंह कंग ने किया है, जिसमें देश भर के मिन्नी कहानीकारों की रचनाएँ शामिल हैं। यह किताब हिंदी भाषा में भी आई है पिछले साल किसान संघर्ष पर एक मिन्नी कहानी संग्रह संपादित हुआ था, ‘मिट्टी दे जाए’, तो इस साल भी मैडम सतिंदर कौर काहलों ने ‘एक मोर्चा इह वी’ नाम से इस विषय पर एक किताब का संपादन किया है. जिसमें लेखकों ने किसान संघर्ष के विभिन्न चरणों को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है। शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में लघुकथा संग्रह ‘काले आखरां दी धुप्प’ डॉ. दीप्ति और कुलरिया द्वारा संपादित है जिसमें पंजाबी लेखकों के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों की रचनाएँ का पंजाबी अनुवाद भी शामिल हैं। ‘आलोचकों की नजरों में डॉ श्याम सुंदर दीप्ति की लघुकथाएं’ जगदीश कुलरियाँ द्वारा संपादित एक पुस्तक है, जिसमें डॉ दीप्ति की मिन्नी कहानिओं के बारे में डॉ. दीदार सिंह, प्रो. गुरदीप ढिल्लों, डॉ. कुलदीप सिंह दीप, डॉ. हरप्रीत सिंह राणा, डॉ. नायब सिंह मंदर, सुखदेव सिंह शांत, डॉ. सुखदेव सिंह खहरा, जगदीश राय कुलरियाँ, डॉ. अनूप सिंह, श्याम सुंदर अग्रवाल, डॉ. रविंदर सिंह संधू, डॉ. प्रदीप कौड़ा, हरभजन सिंह खेमकर्णी, निरंजन बोहा, सुरिंदर कैले , करमवीर सिंह सूरी, बिक्रमजीत नूर और कुलविंदर कौशल के आलोचनात्मक निबंध, टिप्पणियाँ और साक्षात्कार शामिल हैं। इस पुस्तक का दूसरा पक्ष हिंदी भाषा में है जिसे ‘समीक्षा के आईने में डॉ. दीप्ति की लघुकथाएं’ नाम से प्रकाशित किया गया है जिसमें हिंदी के सुकेश सहनी, राजेश उत्साही, डॉ. अशोक भाटिया, सुभाष नीरव, डॉ. लता अग्रवाल, डॉ. शील कौशिक, सूर्यकांत नागर, योगराज प्रभाकर, सीमा जैन, अशोक दर्द, बलराम, बलराम अग्रवाल, खेमकरण सोमन, शिक्षा कौशिक नूतन व प्रो. रूप देवगन और अन्य विद्वानों के महत्वपूर्ण निबंध, टिप्पणियाँ, संवाद और चर्चाएँ शामिल है। इस वर्ष मिन्नी कहानी लेखक मंच पंजाब के अलावा भाषा विभाग, जिला मानसा, पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना, पंजाब कला परिषद चंडीगढ़, मिन्नी कहानी लेखक मंच पंजाब बरेटा, केंद्री पंजाबी लेखक सभा (सेखों), पेंडू साहित्य सभा बलियावाली, केंद्री पंजाबी मिन्नी कहानी लेखक मंच पटियाला, लोक कला मंच अबोहर, राम सरूप अणखी साहित्य सभा (रजि.) धौला, अनु मंच लुधियाना आदि ने इस विधा में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए। सोशल मीडिया पर ‘कलमाँ दा काफलां ‘, ‘ओएफसी’, ‘सिर्जनात्मक सिखिया संसार ‘ जैसे संगठन सक्रिय रहे। इन आयोजनों के दौरान कॉमरेड जसवंत सिंह कार शिंगार यादगारी मिन्नी कहानी विकास पुरस्कार-लघुकथा डॉट कॉम पत्रिका , गुरबचन सिंह कोहली यादगारी मिन्नी कहानी सहयोगी पुरस्कार – जसपाल सिंह पाली अमृतसर, गुलशन राय यादगारी मिन्नी कहानी सर्वोत्तम पुस्तक पुरस्कार – मिन्नी कहानी संग्रह ‘ज़िंदगी की वापसी’ के लिए दर्शन सिंह बरेटा , अमरजीत सिंह सरीह एएसआई यादगारी मिन्नी कहानी आलोचक पुरस्कार- प्रो गुरदीप सिंह ढिल्लों , माता महादेवी कौशिक यादगारी मिन्नी कहानी स्त्री लेखिका पुरस्कार – डॉ हरजिंदरपाल कौर कंग, श्री गोपाल विन्दर मित्तल यादगारी मिन्नी कहानी खोज पुरस्कार- डॉ नायब सिंह मंडेर और श्री राजिंदर कुमार नीटा यादगारी मिन्नी कहानी युवा लेखक पुरस्कार-बूटा खान सुखी को प्रदान किये गए ।’लघुकथा कलश’ पत्रिका के सहयोग से पहली बार शुरू किये पुरस्कारों में श्री रोशन फूलवी यादगारी मिन्नी कहानी लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार इस बार मिन्नी कहानी के क्षेत्र में जीवन भर के योगदान को देखते हुए डॉ श्याम सुन्दर दीप्ति जी को प्रदान किया गया । जब कि रवि प्रभाकर लघुकथा स्मारक पुरस्कार-डॉ पुरषोतम दुबे इंदौर और श्रीमती उषा प्रभाकर लघुकथा पुरस्कार -भोपाल कि लेखिका श्रीमती कल्पना भट्ट को प्रदान किये गए ।लघुकथाकार सुखदेव सिंह शांत को ’22वें माता मान कौर यादगारी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। मिन्नी कहानी लेखक मंच पंजाब को प्रज्ञा साहित्य मंच रोहतक की ओर से संपूर्ण गतिविधियों के लिए सम्मानित किया गया। पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना के सहयोग से डॉ. दीप्ति के नेतृत्व में मिन्नी कहानी विधा के सन्दर्भ में स्कूल और कॉलेज के युवाओं के लिए मिन्नी कहानी लेखन वर्कशॉप शुरू की गई। इस वर्ष के दौरान विशेष बात यह रही कि श्री सुरिंदर सिंह सुन्नड़ और डॉ. लखविंदर सिंह जौहल के संपादन में प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘आपनी आवाज’ में मई 2022 में मिन्नी कहानियों के बारे में एक विशेष कॉलम शुरू हुआ। इसी प्रकार ‘रोजाना नवां जमाना’ ने नवंबर 2022 से अपने साप्ताहिक साहित्यिक अंक ‘इवार्ता’ में प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को ‘समकली मिन्नी कहानियां’ का प्रकाशन प्रारंभ किया है.। मासिक ‘मेहरम’ में सितम्बर 2022 से शुरू हुआ ‘कुलरियाँ नामा ‘ स्तम्भ भी इसी विधा पर केन्द्रित है, जबकि डॉ. नवनीत कौर के संपादन में कनाडा के मासिक समाचार पत्र ‘नव सवेर’ में विगत दो वर्षों से चला आ रहा लघुकथा स्तंभ इस वर्ष भी जारी रहा। नए ज़माना टीवी द्वारा ‘मिन्नी कहानी’ को लेकर पेश किया है खास इंटरव्यू चर्चित रहा। हरमेल परित जी की पहल पर ‘वर्ड मीडिया यूएसए’ ने मिन्नी कहानियों पर कई कार्यक्रम केंद्रित किए हैं। डॉ कुलदीप सिंह अध्यक्ष, पंजाबी विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रयास से ‘कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरक्षेत्र’ में और डॉ भीम इंदर सिंह अध्यक्ष पंजाबी साहित्य अध्यन विभाग पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के सहयोग से पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में भी मिन्नी कहानी विधा पर विशेष कार्यकर्मों का आयोजन किया गया। इस वर्ष भी मिन्नी कहानी विधा की निरोल पत्रिकाएं ‘मिन्नी ‘ और ‘छिन्न’ पाठकों तक समय पर पहुँचती रहीं। ‘अनु’ का मिन्नी कहानी से जुड़ाव आज भी बरकरार है इस पत्रिका में पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना द्वारा आयोजित मिन्नी कहानी दरबार की मिन्नी कहानियों को विशेषांक के रूप में छापा गया है। ‘मुहांदरा’, ‘शबद त्रिंजन’, ‘गुसाईंया ‘, ‘सुल सुराही’, ‘प्रतिमान’, ‘मेहरम’, ‘मेला’, ‘तर्कशील’, ‘रंजीत’, शब्द बूँद ‘, ‘जन साहित्य’ आदि पत्रिकाओं में भी मिन्नी कहानियां छपती रही है । इसके अलावा पूरे साल पंजाबी दैनिक अखबारों में भी मिन्नी कहानी की हाज़री लगती रही। इसके अलावा पंजाबी लेखक ‘लघुकथा कलश’, ‘सरंचना’, ‘लघुकथा.डॉटकॉम’, ‘हिंदी चेतना’, ‘अविराम साहित्यिकी’, ‘लघुकथा वृत’, ‘साक्षात्कार’ आदि हिंदी पत्रिकाओं में भी दिखाई देते रहे। पंजाबी लेखकों की रचनाओं का नेपाली, उड़िया, मराठी, अंग्रेजी, शाहमुखी और बांग्ला भाषाओं में भी अनुवाद हुआ । पंजाबी मिन्नी कहानी में आलोचनात्मक कार्यों की कमी खटकती है फिर भी ल वर्तमान समय में डॉ. कुलदीप सिंह दीप, डाॅ. प्रदीप कौड़ा , डॉ. भीम इंदर सिंह, प्रो. गुरदीप ढिल्लों, डॉ. अरविंदर कौर काकड़ा , निरंजन बोहा, डॉ नायब सिंह मंडेर, डॉ. हरप्रीत सिंह राणा, डॉ. रविंदर सिंह संधू, डॉ. हरजिंदर सिंह अटवाल, डॉ. दीपा कुमार दिल्ली, डॉ. कुलदीप सिंह करुक्षेत्र विश्वविद्यालय, डॉ. बलजीत कौर रियाड़, डॉ. संदीप राणा, डॉ. मनजिंदर सिंह अमृतसर, डाॅ. जोगिन्दर सिंह निराला जैसे विद्वान इस विधा पर संवाद को आगे चला रहे हैं। जब हम पूरे साल के पंजाबी मिन्नी कहानी को देखते हैं, तो हमें लगता है कि मिन्नी कहानी ने नए प्रयोग और नए रास्ते अपनाए हैं, लेकिन इसने अभी कई और मंजिलें भी सर करनी बाकी हैं। वर्ष के दौरान, नए लेखकों का इस विधा में शामिल होना और अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करना एक अच्छा शगुन है, लेकिन जल्दबाजी और विधा के बारे में उचित ज्ञान की कमी इसके विधा के लिए एक बड़ी चुनौती भी है। “मिन्नी कहानी लिखना आसान नहीं है, ”शब्दों को एक तरह से सूई के नाके से गुजारना पड़ता है।” इसमें एक भी अतिरिक्त शब्द इसके प्रभाव को बिगाड़ देता है। नए लेखकों और समाचार पत्रों के संपादकों को भी मिन्नी रचनाओं और मिन्नी कहानियों के बीच के अंतर को पहचानने की कोशिश करने की आवश्यकता है ताकि यह विधा अधिक फल-फूल सके।

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